लेखनी प्रतियोगिता -13-Aug-2022 विषय --खामोशी
विषय--खामोशी*
बिखर रहे हैं दिन पर दिन रिश्ते
रिश्तों में दूरियों ने जगह बनाई
जिस आंगन में होती थी हंसी ठिठोली
वहां रहती है अब हरदम खामोशी' छाई
स्वार्थ के वशीभूत होकर हम
संयुक्तता से एकल की ओर चले
भूलकर रिश्ते नातों को, खोएं अहम में
कैसे जीवन में खुशियों के उपवन खिले
ढलती जा रही है उम्र फिर भी
क्यों दिखाते हो अभिमान
जब हमें खाली हाथ ही है जाना,
यहीं धरा रह जाएगा सामान
खो गया है जो अपनापन, स्नेह
उसे वापस लानें की पहल करें मिलकर भाई
खामोशियों को हम दूर करें, नेह की बांध डोर
रिश्तों में फिर से प्रेम की अलख जाए जगाई
स्वरचित एवं मौलिक रचना
--✍️ एकता गुप्ता 'काव्या'
Pankaj Pandey
15-Aug-2022 08:01 AM
Nice
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अनीस राही
14-Aug-2022 01:46 PM
सुंदर
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K.K.KAUSHAL (Advocate)
14-Aug-2022 12:49 PM
लाज़वाब पँक्तियाँ है ।
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